Book Description
निशिगंधा नाम की तरफ मेरा झुकाव इसमें निहित मेरे नाम की वजह से हुआ। निशिगंधा यहाँ पर फूल नहीं, बल्कि मैं हूँI इस काव्य-संग्रह में मेरे वजूद की गंध है, मेरी अंतरात्मा की खुशबू है, मेरी भावनाओं की महक है। इन सभी चीजों से लबालब लहराती हुई मेरी कलम ने जो कुछ भी लिखा मेरे दिल की आवाज़ को शब्दों में बाँधकर लिखा है। अपने बारे में कहूँ तो सर्वप्रथम यह बात आती है कि मैं हिंदी साहित्य की विद्यार्थी नहीं रही। हिंदी को मैंने पढ़ा है, कानों से सुनी है, दिल से शब्दों के अर्थ को महसूस किया है। मेरे मायके तथा ससुराल में हमेशा से ही हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं का बहुत महत्व रहा है। शायद इसलिए कि, मोबाइल युग नहीं था। उस काल में या तो पढ़ने के लिए किताबें होती थीं या फिर खेलने के लिए झोली भर के भाई-बहन। माँ ने गाँव में ही शिक्षा पाई थी, और पिता ने शहर में। उन्हें भी पढ़ने का शौक था और हमारे दादा और दादी को भी। मैं अक्सर बचपन में लोगों के बीच से गायब हो जाती थी, और ढूँढ़े जाने पर मैं किसी कोने में पत्रिका या उपन्यास पढ़ती पाई जाती थी। यही पढ़ते रहना मेरे साहित्य-प्रेम के पौधों की जड़, मिट्टी और खाद बना। कोरोना काल का ये ऋण है कि हिंदी भाषा का जो बीज मेरे भीतर पड़ा साँस ले रहा था, उस काल में मेरी अभिव्यक्ति बनकर वह मिट्टी से बाहर आया। ईश्वर ने यकीनन इसीलिए मेरे हाथ में कलम थमाई होगी कि मैं अपने संघर्ष में, जो स्वास्थ्य के साथ चल रहा था, उसे अपना औजार बना सकूँ। कलम क्या कुछ कर जाती है आपके लिए, कितना दे जाती है, ये तब जाना मैंने जब वह मेरे हाथ में, मेरे लिए आई और इसमें दो मत कभी नहीं हो सकते कि मेरे पहले प्रयास को देखकर मेरे हमसफ़र के चेहरे पर आई विश्वास भरी मुस्कान ने ही कलम को थामे रहने की ताकत मुझे दी।