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"चौराहा" ऐसी कहानियों की कल्पना है जो वास्तविकता के बहुत करीब ही नहीं बल्कि वास्तविकता है भी। नि:संदेह मानव सभ्यता ने बहुत प्रगति की है। हम सब उस प्रगति को ही देखते रहे। हमने विकास के साथ आये विकार और विनाश को देखने या समझने को महत्त्व ही नहीं दिया। दृश्य यह बन गया कि जो विकास सभ्यता की आवश्यकता थी, सभ्यता आज उसी विकास से लड़ने को विवश है।