Book Description
मानव जीवन बड़ा अनमोल है। धरती के सब जीव-जंतुओं में सर्वोत्तम स्थान मनुष्य को ही प्राप्त है। जब इंसान जन्म लेता है तो उसका मन बड़ा ही पवित्र होता है। वह सांसारिक लोभ-लालच, मोह-माया, छल-कपट रहित जीवन की शुरुआत करता है। जैसे-जैसे वह बड़ा होता जाता है तो सम-विषम हालातों का सामना करता हुआ ज़िंदगी के असली रूप से मुखातिब होता जाता है। समय के साथ साथ उसकी निर्मल आत्मा पर लोभ-लालच, मोह-माया, कुंठा, कठोरता आदि का आवरण चढ़ता जाता है। परिणामस्वरूप मनुष्य खुद को सामाजिक प्राणी होते हुए भी अकेला व हीन-भावना का शिकार महसूस करने लगता है या फिर इतना निरीह और कठोर हो जाता है कि उसके व्यवहार से दया, ममता, प्रेम, करुणा, त्याग आदि मानवता के लक्षण तिरोहित होने लगते हैं। जबकि ज़रुरत इस बात की है कि हालात चाहे जैसे भी हों, इंसान ज़मीन से जुड़ा रहकर आसमान छूता रहे और आदर्श संसार की कल्पना-स्वरूप 'वसुधैव कुटुंबकम्' की मान-मर्यादा का पालन करता रहे। जीवन की सम-विषम हालातों में इंसान हार नहीं माने और दूसरों के अस्तित्व को कमज़ोर न आँके। पुस्तक में संकलित कविताओं के माध्यम से ऐसा प्रयास किया गया है कि परमपिता परमात्मा की कृपा से मनुष्य-मात्र को हालातों से लड़ने, हार मान कर चुपचाप न बैठने, चुनौतियों का सामना करने, अपने व परायों को यथोचित सम्मान देने व अपनी कमियाँ जानकर उनका सुधार करने, किसी काम के करने को लेकर छोटा-बड़ा न समझने की भावना का विकास करने की लगातार शक्ति व क्षमता मिलती रहे।